“Roja” ek Urdu shabd hai jo “roza” ya “fasting” ko refer karta hai. Roza ya roja, Islam dharma mein ek mahine ke douran roza rakhne ka ek pramukh aacharan hai, jo Ramzan mahine ke dauran kiya jata hai. Yeh Ramzan ke mahine mein Musalmano dwara pratidin kiya jata hai. Yeh pratik roop se Musalmano ke liye maansik, sharirik aur adhyatmik pavitrata ko badhata hai.
Roza rakhne ka arth hai ki rozedaron ko sawari (sunset) se suryoday (sunrise) tak kuch bhi khane pine se parhez karna hota hai, sath hi buraiyon se aur galat karyon se bhi bachna hota hai. Roza rakhne ka mukhya uddeshya Ishwar ya Allah ki ibadat karna, pavitrata aur sabr ki prashikshan dena hai. Ramadan ka mahina islami calendar mein nauvi mahina hai.
Roza rakhne ka shuruaat kiya jata hai suhur (sehri) ke naam se ek subah ke samay mein, aur roza iftar ke naam se ek shaam ke samay mein toot jaata hai. Suhur mein logon ko apne din ke liye shakti pradaan karne ke liye bhojan karte hain, aur iftar mein roza ko todne ke liye bhojan karte hain.
Iske alava, roza rakhne ka mahina ek aham asbab hai samajik unity aur insaniyat ka. Ismein logon ko apne gharib bhaiyon aur bahnon ki madad karne ki bhi parampara hai.
Samanya taur par, Ramadan ke mahine mein roze rakhne ke alava, musalmanon ko namaz, quran ki tilawat, sadqa aur dusre ibadat bhi karni hoti hai.
रोज़ा खोलने की दुआ: रोज़ा रखने की दुआ उर्दू में और उसका महत्व (roja kholne ki dua hindi mein)
Introduction: रमज़ान माह का आगाज़ हो रहा है, और इस मुबारक महीने में रोज़ा रखने और उसे खोलने की दुआ का अहम अदान आता है। रोज़ा रखने की दुआ उर्दू में इस खास वक्त की पवित्र तस्वीर को और भी अधिक रोशनी में ला देती है। इस लेख में, हम रोज़ा खोलने की दुआ, उसका महत्व और इसे सही तरीके से पढ़ने के बारे में चर्चा करेंगे।
आइए शुरू करते हैं:
रोज़ा खोलने की दुआ (रोज़ा रखने की दुआ उर्दू में): “اللَّهُمَّ إِنِّي لَكَ صُمْتُ وَبِكَ آمَنْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ” Transliteration: Allahumma inni laka sumtu wa bika aamantu wa ‘alayka tawakkaltu wa ‘ala rizq-ika-aftartu.
अर्थ: “अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा है, तेरे ही ईमान रखता हूँ, तुझ पर भरोसा किया है, और तेरे रोज़े का आश्रय किया है।”
रोज़ा खोलने का महत्व: रोज़ा खोलने की दुआ का पठन मुस्लिम समुदाय के लिए एक अहम आदत है। यह दुआ न सिर्फ उनके रोज़ा को खोलने में सहायक होती है, बल्कि इससे उनके मन, शरीर और आत्मा को भी एक प्रकार की शांति मिलती है। यह दुआ उन्हें अपने ईश्वर के सामने अपनी सारी श्रद्धा और आस्था को प्रकट करने का अवसर देती है।
रोज़ा खोलने की दुआ को सही तरीके से पढ़ना: रोज़ा खोलने की दुआ को पढ़ते समय, ध्यान रखें कि आप इसे सही तरीके से पढ़ रहे हैं और सही उच्चारण कर रहे हैं। अगर आप इस दुआ का अधिक सही उच्चारण चाहते हैं, तो आप एक योग्य इमाम या आलिम की मदद ले सकते हैं।
roza rakhne ki dua– रोज़ा रखने की दुआ
रोज़ा रखने की दुआ: “अल्लाहुम्मा इन्नी लिका सुम्तु वा बिका आमन्तु वा आलैका तवववक्कल्तु वा आला रिज्किका अफ्तार्तु।” (Allahumma inni laka sumtu wa bika amantu wa ‘alaika tawakkaltu wa ‘ala rizq-ika-aftartu)
इस दुआ का अर्थ है: “हे अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा है, तेरे ही ईमान रखता हूँ, तुझ पर भरोसा किया है, और तेरे रोज़े का आश्रय किया है।”
रोज़ा रखने की दुआ (उर्दू)
“اللَّهُمَّ إِنِّي لَكَ صُمْتُ وَبِكَ آمَنْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ” (Allahumma inni laka sumtu wa bika aamantu wa ‘alayka tawakkaltu wa ‘ala rizq-ika-aftartu)
रमज़ान माह एक अद्भुत अवसर है जब मुस्लिम समुदाय अपनी आस्था को मजबूत करते हैं और अपने ईश्वर के साथ निकटता का अनुभव करते हैं। रोज़ा खोलने की दुआ उनके लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो इस पावन माह के महत्व को और भी अधिक महसूस करते हैं। इस रमज़ान, हमें यह दुआ को सही तरीके से पढ़कर और उसके महत्व को समझकर अपनी आस्था को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए।
आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। धन्यवाद।